सर्वप्रथम वारेन हेस्टिंग्स ने बंगाल में सन 1772 में इजारेदारी प्रथा की शुरुआत की।
यह एक पंचवर्षीय व्यवस्था थी जिसमें सबसे ऊंची बोली लगाने वाले को भूमि पांच वर्ष के लिए ठेके पर दी जाती थी।
बाद में पंचवर्षीय ठेके को वार्षिक कर दिया गया।
स्थायी बंदोबस्त या जमींदारी व्यवस्था:
कर्नविलास ने इजारेदारी व्यवस्था के दोषों को दूर करने के उद्देश्य से 'स्थाई बंदोबस्त' व्यवस्था आरंभ की।
यह व्यवस्था बंगाल, बिहार, उड़ीसा, बनारस और उत्तरी कर्नाटक में लागू की गई।
राज्य की मांग लगान का 89% तय की गई थी और 11% जमींदार को अपने पास रखना था। (10 भाग राज्य को व 11वा यानी 1 भाग जमींदार को)।
यदि कोई जमींदार निर्धारित तिथि तक भू राजस्व की निश्चित राशि नहीं जमा करता था तो उसकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था :
सन 1820 में मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने रैयतवाड़ी व्यवस्था आरंभ की।
यह व्यवस्था मद्रास, बंबई, एवं असम के कुछ भागों में लागू की गई।
रैयतवाड़ी व्यवस्था के तहत लगभग 51% भूमि आई। इसमें रैयतों या किसानों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान किया गया।
अब किसान स्वयं कंपनी को भू राजस्व देने को उत्तरदायी थे।
इस व्यवस्था में भू राजस्व का निर्धारण उपज के आधार पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर था।
महालवाड़ी व्यवस्था:
"महाल" से तात्पर्य है गांव, इस व्यवस्था के अंतर्गत गांव के मुख्या के साथ सरकार का लगान वसूली का समझौता होता था, जिसे महालवाडी बंदोबस्त/व्यवस्था कहा गया।
लॉर्ड हेस्टिंग्स द्वारा मध्य प्रांत, आगरा, पंजाब के क्षेत्रों में एक ये भू राजस्व व्यवस्था लागू की गई।
महालवाड़ी व्यवस्था तहत लगान का निर्धारण महाल या संपूर्ण गांव की उपज के आधार पर किया जाता था।
इसमें गांव के प्रमुख को, किसानों को भूमि से बेदखल करने का अधिकार था।
इसके तहत भूमि का कुल 30% सम्मिलित था।
स्वतंत्रता पश्चात सुधार
आगे बढ़ने से पहले पढ़ें :
भारतीय संविधान की अनुसूची 7 के तहत भूमि राज्य सूची का विषय है, इसलिए अलग अलग राज्यों के अलग अलग नियम और नीतियां है।
केंद्र सरकार नीति बना सकती है, फंड जारी कर सकती है लेकिन कार्यान्वयन राज्य सरकार के हाथ में है।
भू राजस्व प्रशासन गैर योजनागत व्यय के अंतर्गत आता है इसलिए अधिक बजटीय आवंटन नहीं मिलता है।
संविधान की 9वीं अनुसूची में कई भूमि सुधार कानून शामिल है। जिनमें अधिकतर कानून अलग अलग राज्यों के अपने अपने अलग भूमि सुधार कानून है।
स्वतंत्रता पश्चात संस्थागत सुधार
मध्यस्थों का उन्मूलन
जमींदारी, महालवाड़ी, रैयतवाड़ी व्यवस्थाओं की पूर्ण रूप से समाप्ति।
इसके लिए सभी राज्यों ने अपने अपने भूमि प्रबंधन कानून बनाएं, भारत में आज भूमि प्रबंधन इन्ही कानूनों से होता है, इन्ही कानूनों से अतिक्रमण इत्यादि समस्याओं का समाधान होता है।
upsc की अप्रोच से इन कानूनों को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है, बस इतना जान लो कि सभी राज्यों ने अपने अपने कानून बनाकर पुरानी व्यवस्था को प्रतिस्थापित कर दिया।
काश्तकारी सुधार
इस श्रेणी में वो कानून शामिल है जो काश्तकार (खेत जोतने वाला व्यक्ति) के अधिकारों को संरक्षित किया गया है। जिनमे लगान का नियमन, बटाईदारों ( बटे भाग मालिक को देकर जमीन जोतने वाले) की जोत की रक्षा, काश्तकारों को स्वामित्व अधिकार देने का प्रयास इत्यादि शामिल है।
इनमे से अधिकतर कानून संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के विरोधी थे इसलिए इन्हे वैधता देने के लिए पहले संविधान संशोधन 1951 में ही एक 9 वी अनुसूची जोड़ी गई और बोला गया कि इसमें शामिल कानूनों को मूल अधिकारों के हनन के आधार पर अवैध करार नहीं दिया जाएगा।
भूमि स्वामित्व की सीमा
भूमि सुधार कानूनों की तीसरी प्रमुख श्रेणी लैंड सीलिंग अधिनियम की थी, वर्ष 1942 में कुमारप्पन समिति ने भूमि के अधिकतम आकार (ज़मींदारों के पास) को लेकर सिफारिश की। यह एक परिवार की आजीविका के लिये आवश्यक सीमा से तीन गुनी अधिक थी।
राज्यों में एकरूपता लाने के लिये वर्ष 1971 में एक नई भूमि सीमा नीति बनाई गई।
इन दिशा-निर्देश में सबसे अच्छी भूमि की सीमा 10-18 एकड़, द्वितीय श्रेणी के भूमि की सीमा 18-27 एकड़ और शेष भूमि सीमा 27-54 एकड़ थी, लेकिन पहाड़ी एवं रेगिस्तानी इलाकों में भूमि की सीमा इनसे थोड़ी अधिक थी।
विभिन्न राज्यों ने इन दिशा निर्देशों का पालन करते हुए भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारित करने के लिए अपने अपने अधिनियम पास किए, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में ये सुधार ज्यादा सफल नहीं हुए।
भूमि स्वामित्व की चकबंदी
चकबंदी करने का अर्थ खंडित भूमियों का एक भूखंड के रूप पुनर्गठन/ पुनर्वितरण करने से हैं।
भूमि चकबंदी के लिए तमिलनाडु, केरल, मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को छोड़कर लगभग सभी राज्यों ने कानून बनाए।
भूमि की चकबंदी करवाना पंजाब हरियाणा राज्य में अनिवार्य थी जबकि अन्य राज्यों में स्वैच्छिक।
स्वतंत्रता पश्चात तकनीकी सुधार व आधुनिकीकरण
इंडिया लैंड रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (DILRMP) :
डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम, जिसे पहले राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (NLRMP) के रूप में जाना जाता था, 2008 में भारत सरकार द्वारा भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने और आधुनिक बनाने और एक केंद्रीकृत भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
लेकिन भारत में भूमि अभिलेख अस्पष्ट है जिसमें दस्तावेज पंजीकरण अधिनियम 1908 के तहत् केवल भूमि हस्थानांतरण पंजीकृत होता है स्वामित्व नहीं, अर्थात इससे पूर्व के हस्थानांतरण को चुनौती दी जा सकती है जिससे स्वामित्व की गारंटी नहीं।
इसी कार्यक्रम के अंतर्गत भारत सरकार ने 2013 में भूमि अधिग्रहण विधेयक पास किया।
2016 में नीति आयोग ने लैंड लीजिंग का प्रस्ताव रखा।
मॉडल कृषि भूमि पट्टा अधिनियम, 2016 :
(Model Agricultural Land Leasing Act, 2016)
इस एक्ट के माध्यम से भू-धारक वैधानिक रूप से कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के लिये आपसी सहमति से भूमि लीज पर दे सकते हैं।
यहाँ यह भी ध्यान रखा गया है कि किसी भी परिस्थिति में लीज प्राप्तकर्त्ता का कृषि भूमि पर कोई दावा मान्य नहीं होगा।
लीज प्राप्तकृत्ता के दृष्टिकोण से यह ध्यान दिया गया है कि उसे संस्थागत ऋण, इंश्योरेंस तथा आपदा राहत राशि उपलब्ध हों, जिससे उसके द्वारा अधिक-से-अधिक कृषि पर निवेश हो सके।
कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्द्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2017 :
24 अप्रैल, 2017 को मॉडल “कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम, 2017” राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा अपनाये जाने हेतु जारी किया गया।
इसमें ई-व्यापार, सब-यार्ड के रूप में गोदामों, सिल्लोज, शीत भंडारण की घोषणा, मंडी शुल्क एवं कमीशन प्रभार को तर्कसंगत बनाना तथा कृषि क्षेत्र में निजी मंडी जैसे सुधार शामिल हैं।
मॉडल अनुबंध खेती और सेवा अधिनियम (Model Contract Farming and Services Act), 2018:
भारत सरकार ने वर्ष 2018 में "Model Contract Farming and Services Act, 2018" जारी किया, जिसमें पहली बार किसानों तथा कृषि आधारित उद्योगों को जोड़ा गया है।
एक्ट में कहा गया है कि किसान की भूमि या परिसर में कोई भी स्थाई निर्माण नहीं किया जा सकता है और प्रायोजक के नाम पर भूमि से संबंधित कोई भी अधिकार हस्तांतरित नहीं हो सकता है।
पिछले वर्षों में भूमि सुधार से पूछे गए प्रश्न
मुख्य परीक्षा में पूछे गए
प्रश्न: कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिये। (2016, GS 3)
प्रश्न: भारत में कृषिभूमि धारणों के पतनोन्मुखी औसत आकार को देखते हुए, जिसके कारण अधिकांश किसानों के लिए कृषि अलाभरी बन गई है, क्या संविदा कृषि को और भूमि को पट्टे पर देने को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके पक्ष-विपक्ष का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। (2015, GS 3)
प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था में भूमि सुधार, कृषि उत्पादकता और गरीबी उन्मूलन के बीच संबंध स्थापित करें। भारत में कृषि-अनुकूल भूमि सुधारों के डिजाइन और कार्यान्वयन में आने वाली कठिनाइयों पर चर्चा करें। (2013)
प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
प्रश्न: 2024
कॉर्नवालिस द्वारा राजस्व संग्रहण के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए :
1.राजस्व संग्रहण के रैयतवाड़ी बंदोबस्त के अधीन, किसानों को फसल खराब होने या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में राजस्व भुगतान से छूट दी गई थी।
2.बंगाल स्थायी बंदोबस्त के अधीन, यदि जमींदार नियत तिथि पर या उससे पहले राज्य को राजस्व का भुगतान करने में विफल रहता, तो उसे उसकी जमींदारी से हटा दिया जाता ।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा / कौन-से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
प्रश्न: 2019
स्वतन्त्र भारत में सुधारों के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(a) हदबन्दी कानून पारिवारिक जोत पर केन्द्रित थे न कि व्यक्तिगत जोत पर
(b) भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि भूमि प्रदान करना था
(c) इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती, कृषि का प्रमुख रूप बन गई
(d) भूमि सुधारों ने हदबन्दी सीमाओं को किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं दी