समावेशी व संपोषणीय विकास तथा खुशहाली
समावेशी विकास :
ऐसा विकास जिसमे रोजगार के अवसर पैदा हो तथा जो गरीबी कम करने में मददगार हो।
समावेशी का मतलब है सभी को शामिल करते हुए, अर्थात गरीब व पिछड़े वर्गों की भी तरक्की सुनिश्चित करने वाला विकास। ये तभी संभव है जब रोजगार के अवसर पैदा हो, प्रगति के लिए आवश्यक सेवाओं जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन इत्यादि तक समान पहुंच हो, तथा ये पहुंच वास्तविक गरीबी को कम करने में कारगर हो।
प्रश्न : भारतीय बैंकिंग सेक्टर में समावेशन के लिए किए गए प्रयास सहायक कम, बैंकिंग सेक्टर के विकास में बाधा अधिक है।
धारणीय/ संपोषणीय/ स्थाई/ टिकाऊ विकास :
वह विकास जिसके अंतर्गत भावी पीढ़ियों के लिए आवश्यकताओं की पूर्ति करने की क्षमताओं से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता को पूरा किया जाता है। (पर्यावरण सुरक्षा से ही सतत विकास संभव।)
जब आप एक पेड़ के केवल पक्के फल काम में लेते हैं और उसी में अपना खर्च व पौधें के लिए खाद्य सामग्री सुनिश्चित करते हैं तो वह एक टिकाऊ विकास है, स्थाई है क्योंकि ये प्रक्रिया चलती रहेगी, आप इस तरह की प्रकिया को अपना सकते हैं धारण कर सकते हैं। इस तरह के विकास में ये पौधा आज, कल व आने वाले दिनों में बराबर उत्पादन देता रहेगा अर्थात संपोषणीय व सतत विकास हो रहा है।
खुशहाली (Human Well-Being):
ऐसा विकास जो जीवन की समग्र गुणवता, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, पर्यावरण की गुणवत्ता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भी सम्मिलित करता है।
कुछ सूचकांक एवं उनके संकेतकों/ मापकों के बारे में पढ़ना:
- (i) Human Development Index (HDI) – UNDP द्वारा जारी
- (ii) Multidimensional Poverty Index (MPI) – UNDP + Oxford Poverty and Human Development Initiative (OPHI)
- (iii) World Happiness Report
- (iv) Global Hunger Index (GHI)