विदेशी निवेश (Foreign Investment)
विदेशी निवेश से अर्थ किसी उद्योग में विदेशी सरकार, संस्था या समुदाय द्वारा पूंजी के लगाये जाने से है।
- कुछ विदेशी संस्थाएँ या सरकारें ऋणों के साथ-साथ कुछ अनुदान (Grant) भी देती हैं जिसको वे वापस नहीं लेती हैं। यह अनुदान विदेशी सहायता (Foreign Assistance) कहलाता है।
विदेशी निवेश केवल INR (भारतीय रुपए) में ही हो सकता है इसके लिए वो अधिकृत बैंक से भारतीय रूपए खरीदते हैं। यही कारण है कि FDI बढ़ने से भारतीय रुपए मजबूत होता है।
भारत में विदेशी वित्तीय निवेश (Foreign Financial Investment):
- भारत द्वारा देश के पूंजी बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश/ विदेशी संस्थागत निवेश (FPI/FII) की अनुमति 1994 में ही दी गई।
- विदेशी निवेश का विनियमन सेबी करता है वहीं ऐसे निवेशों का सीमांत (Ceiling) निर्धारण RBI द्वारा किया जाता है।
- भारत में विदेशी निवेश भारत सरकार द्वारा घोषित विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति तथा विदेशी मुद्रा प्रबंध अधिनियम (फेमा) 1999 के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होते हैं।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI: Foreign Direct Investment)
- जब कोई विदेशी कंपनी या व्यक्ति भारत में किसी कंपनी में सीधा निवेश करता है - जैसे कि फैक्ट्री खोलना, मशीन लगाना, ऑफिस खोलना या किसी इंडियन कंपनी के शेयरों का बड़ा हिस्सा खरीद लेना।
- "एफडीआई" या "प्रत्यक्ष विदेशी निवेश" से तात्पर्य भारत के बाहर के किसी निवासी द्वारा किसी गैर-सूचीबद्ध भारतीय कंपनी में इक्विटी उपकरणों के माध्यम से किए गए निवेश से है; या किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी में पूरी तरह से तनुकृत आधार पर निर्गम के बाद चुकता इक्विटी पूंजी के दस प्रतिशत या उससे अधिक में किए गए निवेश से है।
- निवेशक को प्रबंधन व मतदान अधिकार।
- दीर्घकालिक निवेश।
- 2020 से भारत की भी सीमा रेखा जिनके संपर्क में आती है से देश में होने वाले FDI को पूर्व अनुमति आवश्यक।
- सत्र 2023-24 के प्रारंभिक दस महीनों में भारत का निवल FDI प्रवाह लगभग 31% गिरकर 25.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- भारत का लगभग 65% FDI इक्विटी प्रवाह सेवाओं, दवा और फार्मास्यूटिकल्स, निर्माण (बुनियादी ढाँचे की गतिविधियों) एवं गैर-पारंपरिक ऊर्जा क्षेत्रों में देखा गया।
- वित्त वर्ष 2021-22 में देशवार FDI इक्विटी अंतर्वाह:
- सिंगापुर (27.01%)
- संयुक्त राज्य अमेरिका (17.94%)
- मॉरीशस (15.98%)
- नीदरलैंड (7.86%)
- स्विट्ज़रलैंड (7.31%)
- FDI के प्रकार:
- ग्रीनफील्ड निवेश: बहुत अधिक नियंत्रण और निजीकरण के साथ नई कंपनी की शुरूआत करना।
- ब्राउनफील्ड निवेश: मौजूदा सुविधाओं का उपयोग करके विलय, अधिग्रहण या संयुक्त उद्यम के माध्यम से विस्तार करना।
- जहां FDI में पूर्व अनुमति आवश्यक:
- बैंकिंग और सार्वजनिक क्षेत्र
- प्रसारण सामग्री सेवाएँ
- खाद्य उत्पाद खुदरा व्यापार
- उपग्रह की स्थापना और संचालन
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI)
- जब कोई विदेशी निवेशक भारत के शेयर बाजार या बॉन्ड में पैसा लगाता है लेकिन कंपनी के प्रबंधन में कोई दखल नहीं देता। (10% से कम इक्विटी, अधिक होने पर वह FDI की श्रेणी में आ जाएगा)
- अल्पकालिक निवेश।
- निवेशक सिर्फ प्रॉफिट कमाने के लिए पैसा लगाता है।
- निवेशक कंपनी के प्रबंधन या मतदान में हिस्सा नहीं लेता।
- सेबी द्वारा FPI को तीन वृहत श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है:
- श्रेणी 1:
- केन्द्रीय बैंक की ओर से भारतीय प्रतिभूति बाजार में निवेश करने वाले सरकारी निकाय संस्थाएं।
- श्रेणी 2:
- वित्तीय संस्थाएं, म्यूचुअल फंड इत्यादि जो अपने मूल देश में समुचित रूप से विनियमित हैं।
- श्रेणी 3:
- ऐसी वित्तीय संस्थाएं, जो उपर्युक्त दो में से किसी श्रेणी में नहीं आती हैं।
- श्रेणी 1:
- व्यक्तिगत FPI निवेशक: किसी भी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी में कुल चुकता इक्विटी पूंजी के 10% से कम निवेश कर सकते हैं।
- सामूहिक FPI निवेश: सभी FPI का कुल निवेश कंपनी की चुकता इक्विटी पूंजी के 24% तक सीमित है।
विदेशी संस्थागत निवेश (FII: Foreign Institutional Investment)
- FII, FPI का ही एक पुराना और विशिष्ट रूप है।
- जब कोई संस्था (जैसे कि म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस कंपनी या बैंक) विदेशी होकर भारत में पोर्टफोलियो निवेश करे।
- 2014 के बाद से भारत में इसे FPI की श्रेणी के अंतर्गत ही समझा है मतलब अब इनका अलग से जिक्र नहीं।
पात्र विदेशी निवेशक (QFIs: Qualified Foreign Investor)
- 2012 में सरकार ने पहली बार पात्र विदेशी निवेशकों (QFIs) को जो 'अपने ग्राहक को जाने' (KYC) मानकों को पूरा करते थे, को भारतीय म्यूचुअल फंड एवं इक्विटी बाजार में प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की।
- 2013 में इन्हें कॉरपोरेट ऋण प्रतिभूतियों और एमएफ ऋण स्कीम में, एक अरब अमेरिकी डॉलर की कुल समग्र सीमा के साथ, निवेश की अनुमति प्रदान की गई।
- बाद में खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और यूरोपिय आयोग के सदस्य देशों के नॉन-निवासियों को इसमें शामिल किया गया।
Registered Foreign Portfolio Investor (RFPIs)
- जो पोर्टफोलियो निवेशक सेबी के दिशानिर्देशों के अनुसार रजिस्टर्ड होगा।
- FII और QFI अब इसके अंतर्गत समाहित। (मतलब अब ये दोनों श्रेणी स्वतंत्र रूप से विद्यमान नहीं)
- अब RFPI के लिए नए दिशा निर्देश हैं:
- वे भारतीय कम्पनियों के शेयर और परिवर्तनीय डिबेंचर खरीद- बेच सकते हैं।
- केंद्र या राज्य सरकार के विनिवेश में शेयर खरीद सकते हैं।
- ऐसे निवेशक को स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध व्युत्पादित संविदाओं (Derivative Contracts) पर लेन-देन करने की अनुमति होगी।
- सीमा RBI एवं सेबी द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जाती है।
Unregistered Foreign Portfolio Investor (UFPI)
- जो सेबी के दिशानिर्देशों के अनुसार रजिस्टर्ड नहीं है जैसे कि P-Notes।
पार्टिसिपेटरी नोट्स (Participatory Notes: PN)
- P नोट्स SEBI में रजिस्टर्ड विदेशी निवेशक (RFPIs) द्वारा अनरजिस्टर्ड विदेशी निवेशक (UFPIs) को भारतीय प्रतिभूतियों में निवेश करने के लिए जारी किया जाता हैं।
- धारक वार्षिक शुल्क से पैसा कमाता है जबकि प्रतिभूति की कीमत में उतार चढ़ाव का लाभ PN धारक को।
- PN धारक को मतदान का अधिकार नहीं क्योंकि प्रतिभूति का मालिक अभी भी RFPI है।
- PN का सृजन व व्यापार विदेश में होता है, इसलिए SEBI के नियंत्रण से बाहर है और PN धारक की पहचान नहीं हो पाती जिससे काला धन आता है, हालांकि SEBI ने अब कानून कड़े कर दिए हैं:
- FPI अपने PN धारकों की जानकारी दे, NRI को नहीं दोगे, कानून अनुपालन की शपथ दिलाना आदि।
- श्रेणी III के FPI को PN जारी करने का अधिकार नहीं।
- डेरिवेटिव के PN नोट्स पर मनाही।
- (हालांकि सेबी के लिए झूठ पकड़ना मुश्किल)
- पीएन को विदेशी डेरिवेटिव साधन, इक्विटी संबद्ध नोट, केप्पड़ रिटर्न नोट और पार्टिसिपेटिंग रिटर्न नोट इत्यादि के रूप में भी जाना जाता है।
बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ECB)
- दो मार्गों से: ऑटोमैटिक व स्वीकृति मार्ग से, जहां सरकारी स्वीकृति आवश्यक हो
- स्वीकृति मार्ग: चीनी मुद्रा में बाह्य उधारी पर RBI से स्वीकृति आवश्यक।
- ऑटोमैटिक: भारत के बाहर भारतीय मुद्रा में जारी मसाला बॉन्ड (न्यूनतम 5 वर्ष अवधि, रियल स्टेट व पूंजी बाजार में निवेश के लिए नहीं)
भारत में विदेशी निवेश के लिए पात्रता
- NRI (Non-Resident Indian) और Persons of Indian Origin (PIOs) बिना किसी खास रजिस्ट्रेशन के, NRE/NRO बैंक अकाउंट के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं। बस KYC करनी पड़ती है।
- निजी खरीद की कोई सीमा नहीं
- PPF जैसी योजनाओं में निवेश नहीं।
- NRI जो भारत का नागरिक है भारत में कृषि भूमि/ बागान/ फॉर्म हाउस के सिवाय कोई भी अचल संपति को खरीद सकता है। अगर उपरोक्त मनाही वाली संपत्ति विरासत में मिले तो उनका अंतरण केवल भारत में स्थायी निवासी को।
- विदेशी निवेशकों को SEBI के पास FPI के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है।
- भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले सभी देशों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए पूर्व सहमति आवश्यक। (मालदीव व श्रीलंका के सिवाय पड़ोसी)
- उपरोक्त देशों के नागरिक भारत में अचल संपत्ति न तो अधिग्रहित करेगा और न ही अंतरित करेगा, सिवाय रिज़र्व बैंक की पूर्व अनुमति से अधिकतम 5 वर्ष तक के पट्टे पर।
- विदेशी दूतावासों/कांसुलेट भारत में राजनयिकों को कृषि भूमि, बागान संपत्ति या फॉर्म हाउस के सिवाय भारत में कोई भी अचल संपत्ति खरीदने-बेचने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि पूर्व अनुमति हो।
प्रवासी भारतीयों के लिए NRE / FCNR / NRO अकाउंट
1. NRE अकाउंट (Non-Resident External Account)
- विदेशी कमाई भारत भेजने के लिए उपयोग होता है।
- जमा भारतीय रूपये में होता है।
- जमा केवल विदेश से किया जा सकता है।
- ब्याज टैक्स फ्री होता है।
- पैसे कभी भी वापस विदेश भेज सकते हैं, बिना कोई शुल्क दिए।
2. FCNR अकाउंट (Foreign Currency Non-Resident Account)
- विदेश से सेविंग के लिए बनाया गया खाता है।
- जमा विदेशी मुद्रा में किया जाता है।
- अकाउंट फिक्स्ड डिपोजिट टाइप होता है।
- रुपए में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाव करता है।
- ब्याज टैक्स फ्री होता है।
- पैसे कभी भी वापस विदेश भेज सकते हैं, पूरी तरह फ्री।
3. NRO अकाउंट (Non-Resident Ordinary Account)
- NRI द्वारा भारत में हुई कमाई (जैसे किराया, ब्याज) को संभालने के लिए होता है।
- जमा भारतीय रूपये में किया जाता है।
- ब्याज टैक्सेबल होता है।
- सीमित मात्रा में पैसे विदेश भेज सकते हैं (वर्तमान में 1 मिलियन USD प्रतिवर्ष)।
- भारत से निवेश से प्राप्त ब्याज NRO में जमा होता है।
निवेश से संबंधित शब्दावली
हेज फंड:
- हेज फंड वास्तव में निवेश योग्य पूंजी है (स्वतंत्र रूप से प्रवाहित पूंजी) जो किसी अर्थव्यवस्था के ज्यादा लाभकारी क्षेत्र की ओर काफी तेजी से आगे बढ़ती है।
- कम लाभकारी से ज्यादा लाभकारी अर्थव्यवस्था की ओर भी। (खतरनाक अगर किसी अर्थव्यवस्था से बाहर निकले)